जिन्होने बि.आर.
चोप्राजी की “महाभारत” देखे है वोह इस पोस्ट को ज़्यादा समझ पायेंगे, जिन्होने नेही देखा उन्हे थोड़ा बता देता हू...
ऐसा हम्ने देखा है
बी.आर. चोप्राजी कि महाभारत मे की...जब कोई बड़े दिल से कुछ प्रार्थना करता था या
फिर कुछ कसम खाता था तभी अचानक ज़ोर से बिज्ली चमक्ने लागती थी, ज़ोर ज़ोर से बाद्ल गरजने लागता था और फिर सुनायी
देती थी बिधाता की अवाज़(आकाश-वानी) जो आसमान से आता था, बहुत ही गम्भीर और सीरीयस type का होता था वो आवाज़्, वो आवाज़ कुछ ऐसा कहेता था...
“बत्स तुम्हारी
प्रारथना स्वीकार हुया”
या फिर ऐसा कहेता
था...
“बतस तुम्हारी इस
फैसले से हम संतुस्ट हुये, तुम कामईयाब होगे”.
तोह ऐसा कुछ मेरे
साथ भी होता है अक्सर, बिज्ली नही चमकती, ना ही
बाद्ल ज़ोर ज़ोर से गरजता है लेकिन आकाश-वानी होता है,ऐसा ही एक किस्सा आप लोगो को सुनाता हूँ आज...
कुछ दिन पहेले की
बात है, मै शाम को टहेलने निकला था, सहेर की भीड़-भाड़ को छोड़ के मैने सहेर के बाहार
की रास्ते से पैडेल चल राहा था, चारो और सन्नाटा
छाया हुया था, थोड़ी बहुत चांदनी थी, कोई बहुत याद आ रहा था मुझे, तोह मैने उन्की याद मे “हम दिल दे चुके सनम” मुभी का वो मशहुर गाना...
“झोंका ह्वा का आज
भी जुल्फे उड़ाता होगा ना”,
येह गाना गा रहा था, जैसे ही मैने गाया...
“तेरा दुपट्टा आज भी
तेरे सर से सड़्क्ता होगा ना”
तभी मुझे आकाश-वानी
सुनायी दि, आकाश-वानीने बोला...
“हा हा हा हा हा, बत्स येह गाना तु जिस्की याद मे गा रहा है वो आज-कल
दुपट्टा ईस्तेमाल करती ही नही,हा हा हा हा हा”
फीर् किया? फीर मेरा जो expression
था वो आप लोग तस्बीर मे देख लिजियी...
No comments:
Post a Comment